आज पूरा देश दीपावली के रोशनी भरे त्योहार को मनाने की तैयारी में है।
अमावस्या तिथि आज दोपहर 3:30 बजे से शुरू होगी और अगले दिन सुबह 5:25 बजे तक रहेगी।
यानी आज से लेकर कल सुबह तक आप लक्ष्मी पूजन कर सकते हैं।
इस बार दीपावली पर कुल 8 शुभ मुहूर्त रहेंगे।
यह दिन धन, समृद्धि और खुशहाली की देवी लक्ष्मी, विघ्नहर्ता गणेश और धन के देवता कुबेर की पूजा को समर्पित है।
लोग अपने घरों और दफ्तरों को दीयों, लाइट्स और रंगोली से सजाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत करते हैं।
दीपावली क्यों मनाई जाती है? जानिए इस पर्व की 5 प्रमुख कथाएं
1 समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का प्रकट होना
कहानी के अनुसार, देवता और दैत्य जब अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तो उसमें से 14 रत्न निकले।
इन्हीं में से एक थीं देवी लक्ष्मी।
कहा जाता है कि वे पहले से मौजूद थीं, लेकिन किसी बात से नाराज होकर समुद्र में छिप गईं।
हजारों साल बाद वे समुद्र मंथन से फिर प्रकट हुईं।
वह दिन कार्तिक अमावस्या का था, इसलिए उसी दिन को दीपावली और लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है।
2 मां काली की पूजा: पश्चिम बंगाल की परंपरा
जब देशभर में लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में इस दिन काली मां की पूजा होती है।
माना जाता है कि मां काली ने इस रात रक्तबीज जैसे शक्तिशाली असुरों का संहार किया था।
उसी रात यानी कार्तिक अमावस्या को देवी की शक्ति और विजय के प्रतीक के रूप में दीप जलाकर पूजा की जाती है।
3 राजा बलि और भगवान वामन की कहानी (दक्षिण भारत)
यह कथा खासकर केरल और दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है।
दैत्यराज बलि एक पराक्रमी और दयालु राजा थे।
उन्होंने एक बड़ा यज्ञ किया, जिससे देवताओं को लगा कि वे स्वर्गलोक पर भी अधिकार कर लेंगे।
तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और बलि से तीन पग भूमि मांगी।
दो पगों में उन्होंने आसमान और धरती नाप ली और तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया।
लेकिन उनकी भक्ति से खुश होकर विष्णु ने उन्हें साल में एक दिन धरती पर आने की अनुमति दी।
दक्षिण भारत में उसी दिन दीप जलाकर बलि राजा के स्वागत में दीपोत्सव मनाया जाता है।
4 भगवान श्रीराम का अयोध्या लौटना
14 साल का वनवास पूरा कर जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, तो पूरे नगर में खुशियों की लहर दौड़ गई।
अयोध्यावासियों ने अपने घरों में दीए जलाए और पूरे नगर को रोशनी से सजाया।
वह रात कार्तिक अमावस्या की थी, और तभी से दीयों से अंधकार मिटाने वाला यह पर्व दीपावली कहलाया।
5 युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ (महाभारत काल की कथा)
कौरवों से विभाजन के बाद पांडवों को जो जंगल मिला, उसे उन्होंने इंद्रप्रस्थ नामक सुंदर राज्य में बदल दिया।
राजा युधिष्ठिर ने वहां राजसूय यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सैकड़ों राजा और प्रमुख लोग आए।
राज्य की स्थापना के इस अवसर पर भव्य उत्सव मनाया गया, और उसी दिन से दीपावली का त्योहार मनाने की परंपरा बनी।
लक्ष्मी पूजन की सही विधि और मान्यताएं
कौन-सी तस्वीर की पूजा करनी चाहिए?
- खड़ी हुई लक्ष्मी जी की तस्वीर की पूजा नहीं करनी चाहिए।
- उल्लू पर बैठी लक्ष्मी जी की भी पूजा नहीं करनी चाहिए।
- सबसे शुभ मानी जाती है कमल के फूल पर बैठी लक्ष्मी जी की तस्वीर या मूर्ति।
- लक्ष्मी जी के साथ भगवान गणेश और कुबेर जी की भी पूजा करना चाहिए।
पूजन विधि (Lakshmi Puja Vidhi): आसान तरीका
- सबसे पहले घर और पूजा स्थान की अच्छी तरह सफाई करें।
- चौकी या लकड़ी के पट्टे पर लाल कपड़ा बिछाकर मूर्तियाँ स्थापित करें।
- पहले गणेश जी का पूजन करें, फिर लक्ष्मी जी का।
- देवी को फूल, चावल, मिठाई, सिक्के और कपूर अर्पित करें।
- मंत्र “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” का जाप करें।
- पूजा के बाद घर के हर कोने में दीप जलाएं ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा फैले।
दीपावली का संदेश
दीपावली सिर्फ धन और पूजा का त्योहार नहीं है, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की जीत और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
इस दिन हर कोई अपने घर, मन और जीवन में खुशियों की रोशनी जलाने का संकल्प लेता है।