पाकिस्तान और सऊदी अरब ने हाल ही में एक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं। इस डील का सबसे अहम हिस्सा यह है कि “अगर किसी पर हमला होगा, तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।” यानी अगर पाकिस्तान पर हमला होगा, तो सऊदी उसका साथ देगा और अगर सऊदी पर हमला होगा, तो पाकिस्तान साथ देगा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रियाद में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मिलकर इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों ने इसे अपनी लगभग 8 दशक पुरानी ऐतिहासिक और रणनीतिक दोस्ती को और मजबूत करने वाला कदम बताया। डील में इस्लामिक भाईचारा और साझी सुरक्षा हित को भी मुख्य आधार बनाया गया है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने इस डील पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि यह एक पुराने समझौते को औपचारिक रूप देने जैसा कदम है। विदेश मंत्रालय ने कहा:
“हम इस डील के नतीजों और इसके प्रभाव को राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के दृष्टिकोण से समझेंगे। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है।”
पाकिस्तान के लिए डील का मतलब
पाकिस्तान के लिए यह डील भारत के खतरे को देखते हुए की गई है। हाल ही में 22 अप्रैल 2025 को हुआ पाहलगाम आतंकी हमला और उसके जवाब में भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पाकिस्तान को डराने वाला साबित हुआ। ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान और उसके आतंकियों के खिलाफ सटीक कार्रवाई की, जिससे पाकिस्तान को अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए मजबूत सहयोगी की जरूरत महसूस हुई।
इस डील से पाकिस्तान का संदेश साफ है: अगर भारत ने कभी हमला किया, तो उसके पास सऊदी अरब का समर्थन रहेगा। पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश होने के नाते यह कदम अपनी सुरक्षा रणनीति को और मजबूत करने के लिए भी उठा रहा है।
सऊदी अरब की मजबूरी और रणनीति
सऊदी अरब के लिए यह डील केवल पाकिस्तान की वजह से नहीं, बल्कि कुछ बड़े कारणों और मजबूरी के चलते भी है:
- इजरायल का खतरा: हाल ही में इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास नेताओं पर हमला किया, जिससे सऊदी की सुरक्षा चिंता बढ़ी।
- ईरान के साथ तनाव: सऊदी और ईरान के बीच लंबे समय से तल्ख रिश्ते हैं।
- अमेरिका पर भरोसा कम: सऊदी अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह भरोसा नहीं करता। अमेरिका चाहता है कि सऊदी अरब इजरायल के साथ अपने रिश्ते सामान्य करे, लेकिन सऊदी इसे पूरी तरह नहीं मानता।
- पाकिस्तान का परमाणु हथियार: पाकिस्तान के साथ डील होने से सऊदी की सुरक्षा और मजबूत हो जाती है।
- इस्लामिक देशों को एकजुट करना: सऊदी इस डील के जरिए इस्लामिक देशों में एकता का संदेश भी देना चाहता है।
सऊदी क्राउन प्रिंस ने पहले भी गाजा युद्ध पर ‘नरसंहार’ का शब्द इस्तेमाल किया था और इज़राइल की आलोचना की थी। इस डील से सऊदी अरब अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहता है।
जियो-पॉलिटिकल असर
यह समझौता मिडिल ईस्ट और साउथ एशिया के जियो-पॉलिटिक्स में हलचल पैदा कर रहा है। भारत-पाकिस्तान के हालिया तनाव और Operation Sindoor के बाद यह डील क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है।
सऊदी अरब ने इस कदम से अमेरिका पर अपनी सुरक्षा निर्भरता को कम करने और क्षेत्र में अपनी स्वतंत्र भूमिका सुनिश्चित करने की कोशिश की है।
पाकिस्तान-सऊदी अरब डिफेंस डील सिर्फ एक सैन्य समझौता नहीं, बल्कि राजनीतिक, रणनीतिक और क्षेत्रीय सुरक्षा की मजबूरी का नतीजा है। पाकिस्तान अपनी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, जबकि सऊदी अरब अमेरिका पर भरोसा कम होने के बाद अपनी सुरक्षा और इस्लामिक दुनिया में नेतृत्व मजबूत करना चाहता है।
इस डील से साफ है कि अगर भविष्य में कोई बड़ा संकट आया, तो दोनों देशों का साथ मिलेगा, और यह South Asia और Middle East के लिए एक नया रणनीतिक परिदृश्य तैयार कर रहा है।